70वां गणतंत्र मुबारक ! लोकतंत्र का पर्व मुबारक !



आप सभी को गणतंत्र देश होने के 70 वर्ष की शुभकामनाएं !
अक्सर ही 26 जनवरी या 15 अगस्त आते ही देश के प्रति हमारी लघु देशभक्ति तो जाग ही जाती है और साथ में ढेरों सवाल-जवाब और आकलन भी शुरू हो जाते हैं | कभी-कभी ऐसी कई चर्चाओं का मैं भी हिस्सा बन जाती हूं, लेकिन सच बताऊं आज भी ढेरों ऐसी वजह है जो मेरा सिर फक्र से ऊंचा करती हैं कि मैं भारत में पैदा हुई और मैं इस बात से भी इनकार नहीं करती कि बहुत सी ऐसी भी वजह है जिसके कारण कुछ उंगलियां हमारी तरफ उठ जाती हैं |
आज 70 वां गणतंत्र दिवस हम मना रहे हैं लेकिन आज भी मुझे मेरा देश 70 साल का युवा ही लगता है, बिल्कुल जवान और उसका एक कारण भी है, वह यह कि जिसकी 29 औलादें हो वो कैसे बूढ़ा हो सकता है ? उसको तो अभी बहुत कुछ संभालना है कश्मीर जैसे बेटे से लेकर कन्याकुमारी सी बेटी, ऐसी 29 बेटे-बेटियों का पिता भारत कभी बूढ़ा नहीं होता, और इतने बड़े परिवार में अगर कुछ थोड़ी बहुत अनबन होती है तो यह तो स्वाभाविक सी बात है ! लेकिन बाकी सब यह जान लें कि जब हमारे ऊपर कोई विपत्ति आती है तो हमें एक होने में ज़रा सी भी देर नहीं लगती अगर विकास की बात करें तो हर देश की, हर जगह की विकास की परिभाषा अलग-अलग है | अगर आप बिजली और मशीनों जैसे विकास की बात करें तो हमने न जाने कितने युद्ध, कितनी जंगे जीती हैं अपनी मशालों से राहें रोशन करके और दुश्मनों को धूल भी चटाई है और उन्हें माफ कर के गले भी लगाया है | हमनें युद्ध भूमि में अगर दुश्मन को अपने युद्ध कौशल दिखाएं हैं तो युद्ध के बाद उसको क्षमा करके गले लगाकर अपने उदारवाद संस्कार से भी परिचित कराया है | अगर हम शास्त्रों की बात पर आयें तो वेद पुराणों को प्रमाणित करने की आवश्यकता यहां नहीं है, वैसे जो हमें इस क्षेत्र में शून्य समझते हैं तो उनको यह शून्य हम ने ही दिया है | विज्ञान और गणित हमारे ग्रंथों और वेदों में पहले से विद्यमान हैं |
अब सबसे बड़ा सवाल यह कि इतना कुछ होने के बाद भी हम सर्वश्रेष्ठ क्यों नहीं हैं ? तो सर्वश्रेष्ठ तो बहुत ही कम चीजें होती हैं और जो सर्वश्रेष्ठ हो जाते हैं वह स्थिर हो जाते हैं | हमें एक जगह स्थिर नहीं होना, हमें रुकना नहीं है एक ही जगह रुके रहने से धीरे-धीरे क्षीणता आ जाती है | हमें अभी और जानना है अभी और सीखना है, रुकने में हार है चलते रहने में जीत है |
अगर हम एक हजा़र छः सौ अठ्ठारह भाषाओं चौसठ हजा़र एक सौ जातियों और लगभग बारह से भी ज्यादा धर्मों के लोगों को एक साथ एकजुटता से बांधे रख सकते हैं तो बताइए कि हम किस तरह से पीछे हैं | हम वह देश हैं जहां अपनों की पीड़ा ने बैरिस्टर मोहन को बापू महात्मा बना दिया और राजकुमार सिद्धार्थ को सत्य की खोज में गौतम बुदध् बना दिया, हम वही देश है जहां के स्वामी विवेकानंद के भाषण पर, उनके विचारों पर आज के सर्वशक्तिशाली देश अमेरिका के लोगों ने खड़े होकर तालियां बजाकर अभिवादन किया था और न जाने कितने पश्चिमी देशों के चर्चित लोगों ने स्वामी विवेकानंद के बताए मार्ग को आत्मसात किया | हम वही हैं जहां आज भी किसान हल से धरती की छाती फाड़ के अनाज पैदा करता है और यहां आज भी चांद पर कदम रखने वाले अंतरिक्ष के अनसुलझे सवालों की गुत्थी सुलझाने वाले वैज्ञानिक मस्तिष्कों को हम पैदा करते हैं |
गर्व करने की सैकड़ों वजहें हैं, फ़िर भी हमें सीखना भी है और आगे बढ़ना भी है लेकिन गौरव के साथ, आत्माविश्वास के साथ | जय हिंद !

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