काश तुम कभी मिले ना होते...
काश तुम कभी मिले ना होते,
चार कदम हम साथ चले ना होते,
इस बहार की उम्र बहुत कम थी,
गुलशन फिर से वीरान हुए ना होते।
चले ही जाने के लिए कोई आता है क्यों?
आकर कोई ठहर जाता नहीं क्यों?
ठहर के पास बैठ जाता नहीं क्यों?
कब तक दिल की चौखट से यूं किसी को विदा किया जाए,
कभी तो यूं हो कि काश कोई हमेशा के लिए रुक जाए।
क्यों ना मिलकर कोई नया पौधा जिंदगी की क्यारी में रोपे हम,
किसी कली को फूल बनते साथ देखें हम,
बहारें आयें, फूल खिलायें,
हमारा लगाया पौधा पेड़ बन हमें अपने साये के नीचे सुलाये,
वो नींद, वो सपने बहुत मीठे होंगे,
जो हम एक दूसरे की आंखों से देखेंगे,
न जाने कितने सालों से हम नहीं सोए,
कभी तो बालों में उंगलियां फंसा कर कोई ये सुलझाएं,
कब तक दिल की चौखट से यूं किसी को विदा किया जाए।
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