ऊचांई पर पहुंच कर क्या संवेदनाएं मर जाती हैं ?
हर चीज के दो पहलू होते हैं, 'गलती' भी एक ऐसी चीज है जिसके दो पहलू हैं, निकालनी हो तो सबसे आसान लगती है खुद को स्वीकार करना हो तो असंभव सा लगने लगता है | यह मानव स्वभाव है, जो हम दूसरे में सबसे पहले देखते हैं वह है उसकी गलती और जो हम खुद में सबसे पहले छुपाते हैं वह है अपनी गलती... खैर... यह स्वभाव है जिसे दूर करना मुश्किल है | बहुत कम ही ऐसे लोग है जो अपने व्यक्तित्व के दोनों पहलू देखते हों और वे अपवाद हैं |
पिछले कुछ दिनों से लखनऊ का हत्याकांड देख रही हूं, पढ़ रही हूं, सुन रही हूं लेकिन कुछ समझ नहीं पा रही हूं | अभी तक जितनी भी रूपरेखा बनी है उससे तो हत्याकांड ही लग रहा है और कार्यवाही चल रही है लेकिन उससे भी ज्यादा कष्ट जिस चीज को देखकर हो रहा है वह यह कि कुछ पुलिस वाले सोशल मीडिया पर एडिटेड मैसेज चला रहे हैं, कह रहे हैं कि या तो मुझे अनफ्रेंड कर दो या मेरी फ्रेंड लिस्ट से हट जाओ मेरा नंबर डिलीट कर दो... हर विभाग में यूनिटी होती है यह अच्छी बात है और होनी भी चाहिए लेकिन संवेदना नहीं मरनी चाहिए | पब्लिक सर्वेंट यानी जो सेवा देता है लेकिन जब वही सेवाएं लेने लगे गलत सही का भेद भुलाकर तो ऐसी ही घटनाएं समाज में लोगों की आँखें खोलने के लिए और खुद को झकझोरने के लिए होती हैं |
मैं यहां किसी को भी सही या गलत ठहराने या न्याय करने नहीं आई हूं ना ही मैं किसी के प्रति संवेदना व्यक्त कर सकने की स्थिति में हूं क्योंकि यह एक ऐसी घटना है जिसमें मेरी सारी संवेदनाएं कम पड़ेंगी | विवेक तिवारी की पत्नी की नौकरी को लेकर पर भी विभाग के उत्तेजित लोग परेशान हैं उन्हें आपत्ति है खैर... वह सरकार मुआवजे के तौर पर दे रही है | उसने कुछ आधार बिंदुओं पर विचार किया होगा, पर एक सवाल जो मेरे मन में आया वो यह है की आपके विभाग में भी तो मृतक आश्रित को नौकरी मिलती है.... तो आपको यह कैसे पता है कि एक इंस्पेक्टर या सब इंस्पेक्टर या हवलदार का बेटा या बेटी या पत्नी जरूर ही उस लायक होगा कि उसकी मत्यु के बाद वो विभाग में एक अच्छे पद पर आसीन हो सके ? अगर आपको इस बात पर इतना रोष है तो आप अपने विभाग से मृतक आश्रित कोटा खत्म करवा दें |
और रही आपको फ्रेंड लिस्ट से हटाने की बात तो कुछ सयाने बुजुर्ग सदियों पहले कह चुके हैं कि, "पुलिस वाले की न दोस्ती अच्छी ना दुश्मनी" |
एनजीओ से जुड़कर मैंने बहुत काम किया है छोटे-मोटे काम वालंटियर के रूप में भी करती रहती हूं बहुत से विभागों से साबका पड़ता है हर विभाग में हर तरह के अधिकारी हैं, कर्मचारी हैं बहुत तरह के अनुभव होते हैं, पुलिस विभाग के साथ मिलकर भी काम किया है बहुत सकारात्मक अनुभव रहे हैं और कुछ ऐसे भी जिनको यहां लिख पाना बहुत मुश्किल है, तो बात बस इतनी है कि किसी भी चीज के दोनों पहलुओं पर गौर करें | आप खुश किस्मत हैं के आप एक ऐसे पद पर आसीन हैं जहां लोग उम्मीद लेकर आते हैं जब खुद की बात खुद से नहीं संभलती तो वह आपके पास आते हैं कि आप उनकी बात को समझेंगे उनकी समस्या को हल करेंगे... कृपया करके अपने अंदर की संवेदनाओं को जगाए रखें और अपनी जिम्मेदारियों की गरिमा को बनाए रखें | किसी भी पद की गरिमा तभी तक है जब आप एक संतुलन की स्थिति में हों, आवेग या अपनी व्यक्तिगत विचारधारा आपको कभी भी न्याय प्रिय नहीं बना पाएगी |
शुभकामनाओं सहित 🙏
- आकांक्षा
अच्छा है
ReplyDeleteThank you
DeleteNice
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