पिताओं को भी हैप्पी मदर्स डे


आज हर चीज के लिए दिन और समय निश्चित है आप चाहे साल भर अनकंडीशनली प्रेम निभायें, भावना लुटायें, अपने दायित्वों को पूरा करें लेकिन उन सब का मूल्यांकन और उनकी प्रोग्रेस रिपोर्ट इसी एक निश्चित दिन ही सौंप जाएगी। वैसे मेरा इन दिवसों के प्रति ना कभी विरोध रहा है ना कोई विशेष उत्साह, क्योंकि हम एक सामाजिक संरचना में बंधे हुए हैं तो चाहें या ना चाहें हम इन सब का हिस्सा अनायास ही बन जाते हैं। आज मदर्स डे है क्योंकि मातृ दिवस जैसा तो कभी इतिहास में कुछ रहा नहीं... शायद मां को परिभाषित करना इस संसार का दुरूह विषय है।

जहां तक मैंने जाना और समझा है मां बनना जितना शारीरिक रूप से कठिन है उससे ज्यादा कठिन है मानसिक और भावनात्मक रूप से मां बनना, शायद बहुत सी पत्नियां इसीलिए पत्नी बनी रहना चाहती हैं क्योंकि अब वह एक मां हैं। शारीरिक रूप से मां बनने के बाद 6 महीने में कष्ट भूलने लगता है लेकिन मानसिक और भावनात्मक स्तर पर रोज़, हर पल नई चुनौतियों के लिए न जाने कितने युद्ध खुद से ही लड़ने पड़ते हैं। आप एक-दो रात ना सोएं तो यह चिड़चिड़ाहट हर किसी पर ज़ाहिर हो जाती है लेकिन महीनों ढंग से ना सोई मां रातों को जागकर अपने बच्चों को लोई उढ़ाती रहती है। यह प्रकृति की ही देन है जो एक अल्हड़, बेफिक्र, बेबाक लड़की को संवेदनशील और संजीदा बना देती है क्योंकि प्रकृति भी मां है और वह जानती है कि उसके बच्चों को कब किस चीज़ की ज़रूरत होती है - पानी, हवा, मिट्टी, सूरज, चांद, फल-फूल, गर्मी, सर्दी और बारिशें, मां समय-समय पर यह सब अपने बच्चों को देती रहती है।

समाज में एक और परिवर्तन मैंने देखा, जहां मांऐ पिता भी हैं और अब तो पिताओं का मां बनना भी देखा जा रहा है यानी मां होना अब केवल जेंडर रोल नहीं रह गया है। अब मां अच्छा पिता भी साबित हो रही है और पिता अच्छी मां।

लब्बोलुआब यह है की मां होना एक स्त्री का बच्चा जन देना ही नहीं है यह एक चुनौती है - एक मांस के लोथड़े को मानव बनाने की, जो खुद के लिए, समाज के लिए सकारात्मक रूप से निर्माणशील साबित हो। कई बार उपहास होते देखा है कि आजकल के बच्चे क्या जाने मां के आंचल की छांव ? आजकल की मांए तो जींस पहनती हैं... हां, वह जींस पहनती हैं, शॉर्ट्स पहनती है लेकिन आज की मां अपने बच्चों को हर स्तर पर ज्यादा संरक्षित कर रही है, अपने बेटों को उनकी पत्नियों के प्रति संवेदनशील होना सीखा रही हैं, सीखा रही है उनकी पत्नियों के लिए एक प्याला चाय बनाना और अपनी बेटियों को सीख रही है अपने पति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना। वह सीखा रही है कि पति सिर्फ ज़रूरतें पूरी करने के लिए नहीं होते हैं,उनके कंधे मज़बूत है लेकिन उन्हें भी सिर टिकाने के लिए पत्नी के मजबूत कंधों की जरूरत पड़ सकती है।

हमें यह बदलाव अच्छा लग रहा है !

संसार की सभी माओं और पिताओं को "हैप्पी मदर्स डे" !

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