Open Letter to Gargi
मेरी प्यारी गार्गी,
बहुत दिनों बाद आज तुमको फिर यह खुला पत्र (ओपन लेटर) लिख रही हूं, आज का दिन तुम्हारी जिंदगी का महत्वपूर्ण दिन है।
समय वाकई बहुत जल्दी बीत रहा है! और उसी समय की धारा के साथ बहते-बहते तुम इतनी बड़ी हो गई कि आज तुम्हारी फॉर्मल स्कूलिंग शुरू हो गई।
सबसे पहले, तुम्हें तुम्हारा पहला स्कूल बहुत-बहुत मुबारक हो और मुझे मेरा नया नाम- Gargi's mother ❤️
जब तुम पैदा हुई थी तब भी मैंने एक पत्र तुम्हें लिखा था जिसमें मैंने कहा था कि तुम अपने लिए जीना,अपनी शर्तों पर जीना,अपने लिए कुछ बनना,अपने लिए हासिल करना। मेरा या किसी का नाम रोशन करने के लिए नहीं बल्कि जो करना अपनी संतुष्टि और खुशी के लिए करना। क्योंकि अगर तुमने हमारे लिए या हमारे कहने से कुछ कर भी दिया और तुम जीवन भर असंतुष्ट रहीं तो वो असंतुष्टि तुमको चैन से जीने नहीं देगी। जिंदगी का कोई भी रास्ता सही है या गलत इसका परिचय मैं तुम्हें समय-समय पर कराती रहूंगी पर हर समय नहीं क्योंकि किस रास्ते को चुनना है और चुने हुए रास्ते पर किस तरह आगे बढ़ना है इसकी समझ तुम्हें अपने आप बनानी होगी।
जन्म संस्कार और मृत्यु संस्कार से भी ज्यादा बडा है विद्या संस्कार। दुनिया में आने के लिए हमें दूसरों पर आश्रित होना होता है, हम इस दुनिया में मां के गर्भ से जाते हैं और जाते हैं चार लोगों के कंधे पर लेकिन विद्या संस्कार ही हमें अकेले इस दुनिया में आत्मसम्मान के साथ डटे रहने में सहायक है। संसार में आने और संसार से जाने में भले ही लोग साथ हों लेकिन इतने बड़े जीवन को काटने में कई बार हम अकेले भी होते हैं और जीवन के बहुत से महत्वपूर्ण निर्णय हमें अकेले अपने विवेक से ही लेने होते हैं और वह विवेक आता है विद्या से। जैसे-जैसे तुम बड़ी होगी तुम्हारी खुद की स्वतंत्र सोच आकार लेगी और परिपक्व होगी, यही परिपक्वता तुम्हारे व्यवहार में झलकेगी और यही व्यवहार तुम्हारी पर्सनालिटी परिभाषित करेगा। इसलिए यह जरूरी है तुम किस दिशा में सोचती हो? तुम्हारा नजरिया किन चीजों से प्रभावित होता हैं? मेरा मानना है कि किसी भी व्यक्ति की सोच पर किसी का भी प्रभाव नहीं होना चाहिए कम से कम समाज का तो बिल्कुल भी नहीं क्योंकि इस समाज में तुम जितना ज्यादा इंवॉल्व होगी उतनी ही ज्यादा तुम खुद से दूर होती चली जाओगी। ये धीरे-धीरे तुमको खुद से काट देगा क्योंकि समाज को कोई भी चीज या कोई भी व्यक्ति चाहे जितना अच्छा, जितना सही क्यों ना हो पसंद नहीं आता।वह हर अच्छी चीज में बुराइयां बहुत आसानी से ढूंढ लेता है। मैं जानती हूं कि यह समाज जिसको ज्यादा बुरा कहता है वह चीजें इतनी बुरी भी नहीं होती और फिर कठिन समय में यही समाज उस व्यक्ति को छोड़ कर भाग जाता है इसलिए लोगों से ज्यादा खुद पर विश्वास करना सीखना। तुमने मनुष्य का जीवन पाया है- यह सर्वश्रेष्ठ है! तुम इस दुनिया में लोगों को कुछ भी प्रूफ करने के लिए नहीं आई हो तुम यहां अपना जीवन आनंद से जीने आई हो। तुम्हारे अचीवमेंट्स समाज में मेरा स्टेटस सिंबल कभी नहीं बन सकते। मैंने कष्ट सहकर तुमको इसलिए पैदा नहीं किया है और ना ही तुम्हारा इसलिए पालन कर रही हूं कि तुम नंबर 1 या नंबर 2 या नंबर 3 या टॉप 10 में आओ, यकीन करना मुझे तुम्हारी हर हार भी उतनी ही प्रिय होगी जितनी तुम्हारी हर सफलता, हो सकता है जब तुम टॉप करो तो सब तुम्हारी तारीफ़ करें, सब तुम्हारे खास बनना चाहें, तुमसे दोस्ती करना चाहें, हो सकता है स्कूल की प्रिंसीपल, टीचर, तुम्हारे सहपाठी, सहपाठियों की मम्मियां - तुम सब की अजीज़ हो जाओ लेकिन यकीन मानो कभी भी अगर तुम फेल हो जाओगी तब भी तुम मुझे उतनी ही अजीज़ रहेगी, मेरे जिगर का टुकड़ा! तब भी बहुत ही गर्व से मैं कहूंगी की Yes, I am Gargi's mother.
तुम अपने जीवन की खुशियों को, आनंद को छोटी-छोटी चीजों में ढूंढने की कोशिश करना और ज्यादा समय खुद को डिस्कवर करने में लगाना, जो व्यक्ति खुद को संपूर्ण रूप से पा लेता है उसके लिए दुनिया में कुछ भी हासिल करना असंभव नहीं है। मां-बाप अपनी महत्वाकांक्षाओं का बोझ बच्चों के कंधों पर लादकर सबसे पहले तो उनका बचपन उनसे छीन लेते हैं फिर उनके मन की शांति, एक अदृश्य रेस में दौड़ा-दौड़ा कर उनकी मासूम सी इच्छाओं को सब कुछ हासिल कर लेने की हवस के रूप में ढाल देते हैं लेकिन सब कुछ तो जीवन में किसी को हासिल नहीं होता यह सच बच्चा कभी स्वीकार नहीं कर पाता और जब वह बच्चा भी नहीं रह जाता बड़े होने पर तरह-तरह के अवसाद और असुरक्षा से घिरा पूरा जीवन जैसे-तैसे काट देता है। जीवन काटने के लिए नहीं होता जीवन आनंद पूर्वक जीने के लिए होता है।
खुशियां तो सब सेलिब्रेट करते हैं मजबूत जिगरा तो उनका होता है जो अपने दुखों को सेलिब्रेट करें,अपने कष्टों को सेलिब्रेट करें तभी तो तुम अपनी कमियों, अपनी असफलताओं को पहचान कर आगे बढ़ पाओगी, याद रखना जो हमेशा कलियों पर चले हों उन्हें कांटे की जरा सी भी चुभन बर्दाश्त नहीं होती और जो कांटों में पले हों वो एक दिन अपने जीवन को गुलशन बना ही लेते हैं।
तुम भी अपने जीवन में चट्टानों में भी दूब खिलाने का साहस पाओ, मां सरस्वती की कृपा हमेशा तुम पर बनी रहो, न सिर्फ अपने लिए बल्कि अपने से जुड़ने वाले हर व्यक्ति के लिए तुम सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत बनो।
शुभकामनाओं सहित ❣️
तुम्हारी मां।

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