ऊर्जा और ज्ञान का महासागर : स्वामी विवेकानंद


 हमारे देश भारत में एक मठवासी संत जिन्होंने अपने छोटे से जीवन काल में अपने कामों की वजह से प्रसिद्धि हासिल की और केवल देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी उनके ज्ञान और मंतव्यों का लोहा माना गया ऐसे सिर्फ एक ही महापुरुष थे, स्वामी विवेकानंद | किसी भी देश के महापुरुष उस देश के लिए ऊर्जा और ज्ञान का महासागर होते हैं | स्वामी विवेकानंद को आप संकल्पशक्ति, विचारों की ऊर्जा,अध्यात्म और आत्मविश्वास का अथाह सागर मान सकते हैं | स्वामी विवेकानंद ऐसे महापुरुष थे जिन्हें भारत और भारत के बाहर भी वही सम्मान और प्रेम मिला | जिस दौर में स्वामी विवेकानंद अपने जीवन के शिखर पर थे उस दौर में भारत अंग्रेजों का गुलाम था, गुलाम भारत की युवा पीढ़ी को संबोधित करते हुए स्वामी विवेकानंद ने कहा था," उठो, जागो ! और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त ना हो जाए | तुम जो सोच रहे हो उसे जिंदगी का विचार बनाओ| उसके बारे में सोचो, उसके लिए सपने देखो, उस विचार के साथ जियो | तुम्हारे दिमाग में, तुम्हारी मांसपेशियों में, तुम्हारी नसों में और तुम्हारे शरीर के हर हिस्से में वह विचारधारा होना चाहिए | यही सफलता का सूत्र है | सभी शक्तियां तुम्हारे अंदर हैं, तुम कुछ भी कर सकते हो इस बात पर विश्वास करो, भरोसा करो कि तुम कमजोर नहीं हो | अगर तुम्हारे दिमाग और दिल के बीच संघर्ष चल रहा हो तो तुम्हें वही करना चाहिए जो तुम्हारा दिल कहता है "| यह स्वामी विवेकानंद के वह विचार हैं जिन्होंने भारत के युवाओं के मन में स्वाभिमान और स्वतंत्रता के बीज बोए थे और यही वजह है जिससे 12 जनवरी यानी उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस (नेशनल यूथ डे) के रूप में मनाया जाता है |
स्वामी विवेकानंद ने भारत के लोगों को भारत से प्यार करना सिखाया | महात्मा गांधी ने स्वामी विवेकानंद के साहित्य को पढ़ने के बाद उनके बारे में लिखा था कि उन्होंने स्वामी विवेकानंद के विचारों को गहराई से समझा और उनके विचारों की गहराई में उतरने के बाद देश के प्रति उनका प्रेम हज़ार गुना बढ़ गया | आज बड़े-बड़े शहरों में एयर कंडीशंड मॉल में शॉपिंग करते हुए, रेस्टोरेंट्स में फास्ट फूड खाते हुए, कॉफी पीते हुए आप कभी उस दौर की कल्पना भी नहीं कर सकते जब हमारे पूर्वज अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों से कुचले जा रहे थे | देश सिर्फ विदेशी ताकतों का ही गुलाम नहीं था, लोग बहुत सी सामाजिक बुराइयों के भी गुलाम थे | हमारे देश में छुआछूत फैली हुई थी लोग जाति और धर्म के नाम पर लड़ते थे | भारत का पूरा समाज टुकड़ों में बिखरा हुआ था | ऐसे समय में स्वामी विवेकानंद ने भारत के युवाओं में आत्मविश्वास भरा | विचार कीजिए....आज से लगभग 130 वर्ष पहले जब दुनिया भारत को सपेरों और जादूगर का देश कहती थी भारत के लोगों का कोई खास सम्मान नहीं था उस दौर में भी स्वामी विवेकानंद अगर दुनिया को प्रभावित कर सकते हैं आज के दौर में भारतवासी ऐसा क्यों नहीं कर सकते? देश की युवा पीढ़ी को स्वामी विवेकानंद से आज भी बहुत मदद मिल सकती है | स्वामी विवेकानंद ने कहा था, "अपने जीवन में जोखिम उठाओ अगर तुम जीतोगे तो नेतृत्व करोगे अगर तुम हार होगी तो लोगों का मार्गदर्शन करोगे" | वर्ष 1893 में शिकागो में पहली आयोजन हुआ जिसमें स्वामी विवेकानंद ने ऐसा ओजस्वी भाषण दिया था जिसने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया था | भाषण की शुरुआत में उन्होंने कहा था "सिस्टर्स एंड ब्रदर्स और अमेरिका" (अमेरिकी भाइयों और बहनों ) और आपको यह जानकर बहुत अच्छा लगेगा कि उनके इन शब्दों को सुनकर वहां मौजूद लगभग सात हज़ार लोगों ने करीब दो मिनट तक स्वामी विवेकानंद के लिए खड़े होकर के तालियां बजाई थी और उनका अभिवादन किया था | उस दिन दुनिया ने भारत का विश्व रूप देखा था | इस ऐतिहासिक भाषण के बारे में आपने कभी ना कभी जरूर पढ़ा या सुना होगा |
इसके प्रभाव का अंदाजा तो इसी से लगाया जा सकता है कि आज भी स्वामी विवेकानंद के उस भाषण की चर्चा लोग करते हैं |
भारतीय संस्कृति को विश्व स्तर तक पहचान दिलाने वाले महापुरुष का जन्म हमारे देश में हुआ यह आज भी हमारे लिए गौरव की बात है | स्वामी विवेकानंद ने अपनी आत्मकथा में कहा है कि "मैं एक संन्यासी हूं | हे भारत देश ! तुम्हारी सारी कमजोरियों के बावजूद मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूं" | इनसे प्रेरणा लेकर बहुत से प्रसिद्ध लोगों ने सांसारिक जीवन त्याग कर सन्यासी जीवन जिया | आइए एक फिर याद करें उस सूत्र को - उठो, जागो ! और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त ना हो जाए |

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