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Showing posts from October, 2018
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                  रा से राम......रा से रावण...... आजकल हर त्योहार की शुरुआत होती है सोशल मीडिया और व्हाट्सएप पर शुभकामना संदेशों के आने से | नवरात्री और फिर दशहरा की शुरुआत भी ढेरों अलग-अलग तरह की शुभकामनाओं के संदेशों से हुई, संदेश बनाने वाले और सोचने वाले भी बहुत ही सृजनात्मक होते हैं | जैसे ही आज यह मैसेज देखा उस समय लगा कि क्रिएटिविटी की कोई हद नहीं है, इंसानी बुद्धि की सोच का कोई अंत नहीं है | तभी से बहुत तरह के विचार बार-बार ज़हन में आ रहे हैं, कितने साधारण रुप से लिखा है ! 'रा' से ही राम की शुरुआत होती है और 'रा' से ही रावण की लेकिन दोनों का अंत कितना अलग है ! हमारे जीवन में भी यह कितना कितना सटीक बैठता है, हम शून्य से शुरू करते हैं..... कोई दहाई तक पहुंचता है..... कोई सैकड़ा तक..... कोई हजार तक तो कोई लाख तक...... सब का अंत अलग अलग है | वास्तव में जीवन में महत्वपूर्ण क्या है ? शून्य से शुरुआत करना और अंत में आपके कर्म के पीछे, आपकी उपलब्धियों के पीछे कितने शून्य लगे हैं यह महत्वपूर्ण है यानी कि आप दस नंबरी हैं यह सौ नंबरी य...
  ऊचांई पर पहुंच कर क्या संवेदनाएं मर जाती हैं ?      हर चीज के दो पहलू होते हैं, 'गलती' भी एक ऐसी चीज है जिसके दो पहलू हैं, निकालनी हो तो सबसे आसान लगती है खुद को स्वीकार करना हो तो असंभव सा लगने लगता है | यह मानव स्वभाव है, जो हम दूसरे में सबसे पहले देखते हैं वह है उसकी गलती और जो हम खुद में सबसे पहले छुपाते हैं वह है अपनी गलती... खैर... यह स्वभाव है जिसे दूर करना मुश्किल है | बहुत कम ही ऐसे लोग है जो अपने व्यक्तित्व के दोनों पहलू देखते हों और वे अपवाद हैं | पिछले कुछ दिनों से लखनऊ का हत्याकांड देख रही हूं, पढ़ रही हूं, सुन रही हूं लेकिन कुछ समझ नहीं पा रही हूं | अभी तक जितनी भी रूपरेखा बनी है उससे तो हत्याकांड ही लग रहा है और कार्यवाही चल रही है लेकिन उससे भी ज्यादा कष्ट जिस चीज को देखकर हो रहा है वह यह कि कुछ पुलिस वाले सोशल मीडिया पर एडिटेड मैसेज चला रहे हैं,  कह रहे हैं कि या तो मुझे अनफ्रेंड कर दो या मेरी फ्रेंड लिस्ट से हट जाओ मेरा नंबर डिलीट कर दो... हर विभाग में यूनिटी होती है यह अच्छी बात है और होनी भी चाहिए लेकिन संवेदना नहीं मरनी चाहिए | पब्लि...