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पुनरावृति

 तेज बारिश, काले बादल और गरजते बादलों के बीच अपने वजूद को बचाता हुआ एक छोटा सा पेड़ जिसका तना एकदम पतला है और उसी तने से लगी चंद पत्तियों को  उसने बखूबी संभाला हुआ है ! और यह छोटा सा पेड़ हमें कितना कुछ सिखा जाता है ! हमारे आगे पेड़ -पौधे जिनको हम निर्जीव मानते हैं या यह कह लीजिए कि मानव शक्ति के आगे एकदम तिनका मात्र हैं हमें वटवृक्ष जैसी मजबूत सीख दे देते हैं। इन्हें देख कर लगता है आत्मसम्मान को बचाए रखने की प्रबल इच्छा इनमें भी है जो इस बवंडर से तूफान में देखते ही बनती है, किस तरह से हवा का वेग इस पौधे को गिराने के लिए आतुर है और यह वेग से विपरीत सीधा रहने के लिए रहने पर आमादा है। हम रोज ही कभी किसी वजह से कभी बिना कारण तोड़े जाते हैं अपने मन पर अब तक हम ना जाने कितनी ठेस लिए बैठे हैं फिर भी अगर हम बिना बदले की भावना लिए खुद को ऐसी परिस्थितियों से उबारकर अपना सिर ऊंचा करके खुद की जमीन को ठोस बना रहे हैं तो हम अपने आप में सम्मानित हैं । लेट मानसून की पहली बारिश ने जीवन का एक पाठ फिर से याद दिलवा दिया।  देर आए दुरुस्त आए!